भारत में खाद्य सुरक्षा

खाद्य सुरक्षा: सभी लोगों के लिए सदैव भोजन की उपलब्धता, पहुँच और उसे प्राप्त करने का सामर्थ्य

खाद्य सुरक्षा निम्न व्यवस्थाओं पर निर्भर करती है –

  1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली 
  2. शासकीय सतर्कता
  3. खाद्य सुरक्षा के खतरे की स्थिति में सरकार द्वारा की गई कार्यवाही

 

खाद्य सुरक्षा के आयाम :- 

(क) खाद्य उपलब्धता का तात्पर्य देश में खाद्य उत्पादन, खाद्य आयात और सरकारी अनाज भंडारों मेंं संचित पिछले वर्षों के स्टॉक से है।

(ख) पहुँच का अर्थ है कि खाद्य प्रत्यके व्यक्ति को मिलता रहे

(ग) सामर्थ्य का अर्थ है कि लोगों के पास अपनी भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए धन उपलब्ध हो।

 

किसी देश में खाद्य सुरक्षा का सुनिश्चित होना -

(1) सभी लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य उपलब्ध हो,

(2) सभी लोगों के पास स्वीकार्य गुणवत्ता के खाद्य-पदार्थ खरीदने की क्षमता हो और

(3) खाद्य की उपलब्धता में कोई बाधा नहीं हो।

अधिक गरीब वर्ग -->  हर समय खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकता है

निर्धनता रेखा से ऊपर के लोग -->  देश भूकंप, सूखा, बाढ़, सुनामी, फसलों के खराब होने से पैदा हुए अकाल आदि राष्ट्रीय आपदाओं की स्थिति में खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकते हैं।

 

 

खाद्य सुरक्षा का अर्थ :-

1970 के दशक में

 

खाद्य सुरक्षा का अर्थ था-‘आधारिक खाद्य पदार्थों की सदैव पर्याप्त

उपलब्धता ’ ( सं. रा. - 1975)। 

 

अमर्त्य सेन ने खाद्य सुरक्षा में एक नया आयाम जोड़ा और

हकदारियों के आधार पर खाद्य तक पहुँच पर जोर दिया।

विश्व खाद्य शिखर

सम्मेलन, 1995

यह घोषणा की गई कि ‘‘वैयक्तिक, पारिवारिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा का अस्तित्व तभी है, जब सक्रिय और स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए आहार संबंधी जरूरतों और खाद्य पदार्थों को पूरा करने के लिए पर्याप्त, सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्य तक सभी लोगाें की भौतिक एवं आर्थिक पहुँच सदैव हो’’ (खाद्य एवं कृषि संगठन 1996)

 

 

‘‘खाद्य तक पहुँच बढ़ाने में निर्धनता का उन्मूलन किया

जाना परमावश्यक है।’’

 

 

हकदारियों का अभिप्राय :- राज्य या सामाजिक रूप से उपलब्ध कराई गई अन्य पूर्तियां तथा वे वस्तुएं, जिनका उत्पादन और विनिमय बाजार में किसी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है।

 

किसी आपदा का खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव –

सूखा --> कुल उपज में गिरावट --> प्रभावित क्षेत्र में खाद्यान की कमी --> खाद्यान की कमी के कारण कीमतों का बढ़ना --> कुछ लोग तक खाद्यान की पहुंच समाप्त हो जाना

विस्तृत क्षेत्र में या लम्बे समय तक आपदा --> भुखमरी स्थिति  --> अकाल की स्थिति --> बड़े पैमाने पर मौतें (महामारी – दूषित जल व सड़े भोजन के कारण, तथा रोग-प्रतिरोध  क्षमता में कमी के कारण)

1943 बंगाल का अकाल:-

भारत में सबसे भयानक अकाल - 1943 का बंगाल का अकाल था I  

इस अकाल में भारत के बंगाल प्रांत में तीस लाख लोग मारे गए थे।

----------------------------------------Table 4.1 -----------------------------

चावल की कीमतों में भारी वृद्धि से खेतिहर मजदूर, मछुआरे, परिवहनकर्मी और अन्य अनियमित श्रमिक सबसे अधिक प्रभावित हुए। इस अकाल में सबसे अधिक वही मरे।

परियोजना कार्य: भारत में अकाल संबंधी और सूचनाएँ एकत्र करें।

खाद्य-असुरक्षित कौन हैं?

सर्वाधिक प्रभावित वर्ग –

  • भूमिहीन जो थोड़ी बहुत अथवा नगण्य भूमि पर निर्भर हैं,
  • पारंपरिक दस्तकार,
  • पारंपरिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग,
  • अपना छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार
  • निराश्रित तथा भिखारी।

शहरी क्षेत्रें में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित :-

परिवार हैं जिनके कामकाजी सदस्य प्रायः कम वेतन वाले व्यवसायों और अनियत श्रम-बाजार में काम करते हैं। मौसमी कार्यों में लगे हैं और उनको इतनी कम मजदूर |

कृषि कार्य की मौसमी प्रकृति के कारण  कृषि क्षेत्रक में खेतिहर मजदूर  बेरोजगारी के चार महीनों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित रहता है।

1)     कृषि एक मौसमी क्रिया क्यों है?

2)     कृषि श्रमिक वर्ष के लगभग चार महीने बेरोजगार क्यों रहता है?

3)     जब कृषि श्रमिक बेरोजगार होता है, तो वह क्या करता है?

4)     कृषि श्रमिक के परिवार में पूरक आय कौन प्रदान करता है?

5)     कोई भी काम पाने में असमर्थ होने पर, कृषि श्रमिक को कठिनाई क्यों होती है?

6)     कृषि श्रमिक खाद्य की दृष्टि से कब असुरक्षित होता हैैै?

 

 

कृषि क्षेत्रक

खेतिहर मजदूर

पाली का काम (जानवरों के पालन-पोषण का कार्य)

अंशकालिक कार्य

 काम के बदले वस्तुएं

कृषि - मौसमी कार्य

बुवाई, पौध-रोपण, फसल कटाई

 

रिक्शा चालक - प्रतिदिन असमान आय

पीला कार्ड प्राप्त है, जो निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों का पी-डी-एस- कार्ड है। बाजार की कीमत से आधी कीमत |

 

  • क्या रिक्शा चलाने से रिक्शा चालक को नियमित आय होती है?
  • रिक्शा चलाने से होने वाली थोड़ी सी आय के बावजूद पीला कार्ड रिक्शा चालक को अपना परिवार चलाने में कैसे मदद  कर रहा है?
  • रिक्शा चालक खाद्य की दृष्टि से कब असुरक्षित होता है?

 

 

सामाजिक संरचना की खाद्य असुरक्षा में भूमिका / योगदान :-

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ वर्गों  (इनमें से निचली जातियाँ) का या तो भूमि का आधार कमजोर होता है या फिर उनकी भूमि की उत्पादकता बहुत कम होती है, वे खाद्य की दृष्टि से शीघ्र असुरक्षित हो जाते हैं।

 

वे लोग भी खाद्य की दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित होते हैं, जो प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हैं और जिन्हें काम की तलाश में दूसरी जगह जाना पड़ता है।

 कुपोषण से सबसे अधिक  महिलाएँ प्रभावित होती हैं। अजन्मे बच्चों को भी कुपोषण का खतरा रहता है।

 

खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त आबादी का बड़ा भाग गर्भवती तथा दूध पिला रही महिलाओं तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का है।

 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं पारिवारिक सर्वेक्षण (एन-एच-एफ़-एस-) 1998-99 के अनुसार भारत में ऐसी महिलाओं और बच्चों की संख्या 11 करोड़ के लगभग है।

 

देश के कुछ क्षेत्रें, जैसे, आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य जहाँ गरीबी अधिक है, आदिवासी और सुदूर-क्षेत्र, प्राकृतिक आपदाओं से बार-बार प्रभावित होने वाले क्षेत्र आदि में खाद्य की दृष्टि

से असुरक्षित लोगों की संख्या आनुपातिक रूप से बहुत अधिक है।

 

वास्तव में, उत्तर प्रदेश (पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी हिस्से),  बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भागों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित लोगों की सर्वाधिक संख्या है।

  

भुखमरी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा को इंगित करने वाला एक दूसरा पहलू है।    भुखमरी गरीबी की एक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, यह गरीबी लाती है।

 

खाद्य की दृष्टि से सुरक्षित होना à वर्तमान में भुखमरी समाप्त हो जाना और भविष्य में भुखमरी का खतरा कम हो जाता है।

  

भुखमरी के आयाम -> दीर्घकालिक भुखमरी  और मौसमी भुखमरी

दीर्घकालिक भुखमरी = मात्र एवं / या गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग इससे ग्रसित – निम्न आय तथा पर्याप्त आहार खरीदने में असमर्थता

मौसमी भुखमरी = फ़सल उपजाने और काटने के चक्र से संबद्ध है। ग्रामीण क्षेत्र = कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण ।

नगरीय क्षेत्र – अनियमित श्रम के कारण (निर्माण श्रमिक – बरसात में कार्य नहीं) व्यक्ति पूरे वर्ष काम पाने में असमर्थ

------------------------  Table 4.2 ------------------------------------

स्वतंत्रता के बाद भारत का लक्ष्य -->  खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर होना

 

नई कृषि नीति --> हरित क्रान्ति --> गेंहू तथा चावल के उत्पादन में वृद्धि

 

1968 -->  “गेंहूँ क्रान्ति” शीर्षक से एक विशेष डाक टिकिट जारी किया (प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने)

गेंहूँ उत्पादन वृद्धि के उपरांत चावल उत्पादन में वृद्धि ।

 अनाज के उत्पादन में वृद्धि आनुपातिक नहीं है ।

 एच वाई वी प्रकार का गेंहूँ

 सर्वाधिक कुल अनाज उत्पादन वृद्धि – उत्तर प्रदेश (44.01 करोड़ टन) तथा मध्य प्रदेश (30.21 करोड़ टन)

 

कुल अनाज उत्पादन –

 2015-16  --> 252.22 करोड़ टन

2016-17  --> 275.68 करोड़ टन

 

सर्वाधिक गेंहूँ उत्पादन वृद्धि – (2015-16) उत्तर-प्रदेश (26.87 करोड़ टन) मध्य-प्रदेश (17.69 करोड़ टन)

 

चावल के उत्पादन में वृद्धि (2015-16) – पश्चिम बंगाल (15.75 करोड़ टन) उत्तर-प्रदेश (12.51 करोड़ टन)

 

निकट के किसी गाँव में कुछ खेतों पर जाएँ और किसानों द्वारा उपजाई गई खाद्य फसलों का ब्यौरा एकत्रित करें।

 

हरित क्रान्ति – 70 के दशक के प्रारम्भ में । इसके बाद देश में कभी अकाल नहीं पड़ा ।

 

पिछले 30 वर्ष  --> भारत कृषि में आत्मनिर्भर

 

सरकार की खाद्य सुरक्षा व्यवस्था – अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित करना

 

उक्त व्यवस्था के दो घटक – 1) बफर स्टॉक 2) सार्वजनिक वितरण प्रणाली

------------------------------------------ Graph 4.1 -------------------------------------------

आरेख 4-1 का अध्ययन करें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:

  • हमारे देश में किस वर्ष में अनाज उत्पादन 200 करोड़ टन प्रतिवर्ष से अधिक हुआ?
  • भारत में किस दशक में अनाज उत्पादन में सर्वाधिक दशकीय वृद्धि हुई?
  • क्या 2000-01 से भारत में उत्पादन में वृद्धि स्थायी है?

 

 

बफ़र स्टॉक क्या है?

बफ़र स्टॉक - भारतीय खाद्य निगम (एफ़-सी-आई) के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भंडार है।

 

भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानाें से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित कीमत कहा जाता है।

 

इन फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बुआई के मौसम से पहले सरकार

न्यूनतम समर्थित कीमत की घोषणा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं।

 

ऐसा कमी वाले क्षेत्रें में और समाज के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज

के वितरण के लिए किया जाता है। इस कीमत को निर्गम कीमत भी कहते हैं।

 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है ?

भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी-डी-एस) कहते हैं।

 

देश भर में लगभग 5.5 लाख राशन की दुकानें हैं।

 

राशन की दुकानों में, जिन्हें उचित दर वाली दुकानें कहा जाता है, चीनी खाद्यान्न और खाना पकाने के लिए मिट्टी के  तेल का भंडार होता है।

 

राशन कार्ड रखने वाला कोई भी परिवार प्रतिमाह इनकी एक अनुबंधित मात्रा (जैसे 35 किलोग्राम अनाज, 5 लीटर मिट्टी का तेल, 5 किलोग्राम चीनी आदि) निकटवर्ती राशन की दुकान से खरीद सकता है।

 

राशन कार्ड तीन प्रकार के होते हैं:

(क) निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिए अंत्योदय कार्ड,

(ख) निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए बी पी एल कार्ड और

(ग) अन्य लोगों के लिए ए पी एल कार्ड।

 

 

 

 

अपने इलाके की राशन की दुकान पर जाएँ और वहाँ से निम्नलिखित ब्यौरा प्राप्त करें:

1 राशन की दुकान कब खुलती है?

2 राशन की दुकान पर कौन-कौन सी चीजें बेची जाती हैं?

3 राशन की दुकान के चावल और चीनी (निर्धरता की रेखा से नीचे वाले परिवारों के लिए) की कीमत की तुलना किसी अन्य किराने की दुकान की कीमतों से करें।

 

पता लगाएँ:

1 क्या आपके पास राशन कार्ड है?

2 इस राशन कार्ड से आपके परिवार ने हाल में कौन-सी चीज खरीदी है?

3 क्या उन्हें किसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

4 राशन की दुकानें क्यों जरूरी हैं?

 

भारत में राशन व्यवस्था की शुरुआत बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि में 1940 के दशक में हुई।

 

60 के दशक के दौरान राशन प्रणाली पुनर्जीवित की गई।

70 का दशक के मध्य à NSSO की रिपोर्ट à तीन खाद्य संबंधी महत्वपूर्ण

अंतःक्षेप कार्यक्रम –

 

1) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) – पूर्व में विद्यमान को मजबूत करना ।

2) एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS) – 1975 से प्रयोगात्मक रूप से शुरू ।

3) काम के बदले अनाज (FFW) – 1977-78 से प्रारम्भ ।

 

गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (PAP) – खाद्य उपलब्धता इसका ही एक घटक – PDS, दोपहर का भोजन (मिड-डे-मील) {खाद्य सुरक्षा से संबन्धित}

 

रोजगार कार्यक्रम à गरीबों की आय बढ़ाना à खाद्य सुरक्षा में योगदान

 

ग्रामीण वेतन रोजगार कार्यक्रम, रोजगार गारंटी योजना, संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, दोपहर का भोजन, एकीकृत बाल विकास सेवाएँ आदि।  ????

 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली = खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना

 

प्रारंभ में यह प्रणाली सबके लिए थी और निर्धनों और गैर-निर्धनों के बीच कोई भेद नहीं किया जाता था।

बाद के वर्षों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक दक्ष और अधिक लक्षित बनाने के

लिए संशोधित किया गया।

 

1992 में देश के 1700 ब्लॉकों में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आर पी डी एस) शुरू की गई। इसका लक्ष्य दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रें में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लाभ पहुँचाना था।

 

 

जून 1997 -  ‘सभी क्षेत्रें में गरीबों’ को लक्षित करने के सिद्धांत को अपनाने के लिए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी-पी-डी-एस) प्रारंभ की गई। निर्धनों और गैर-निर्धनों के लिए विभेदक कीमत नीति अपनाई गई।

 

2000 में दो विशेष योजनाएँ -  अंत्योदय अन्न योजना और अन्नपूर्णा योजना प्रारंभ की गईं। ये योजनाएँ क्रमशः ‘गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब’ और ‘दीन वरिष्ठ नागरिक’ समूहों पर लक्षित हैं।

 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली à  मूल्यों को स्थिर बनाने और सामर्थ्य अनुसार कीमतों पर उपभोक्ताओं को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की सरकार की नीति में सर्वाधिक प्रभावी साधन सिद्ध हुई है।

 

न्यूनतम समर्थित कीमत और अधिप्राप्ति à खाद्यान उत्पादन में वृद्धि , किसानों की आय सुरक्षा

 

 

अनाज अधिशेष क्षेत्र à अनाज कमी वाले क्षेत्र  (आपूर्ति)

 

 

भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013

भारतीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत खाद्य एवं पोषण संबंधी सुरक्षा सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराई जा सके ताकि मानव गरिमामय जीवन निर्वाह कर सके।

 

इस अधिनियम के तहत 75 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या एवं 50 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को योग्य परिवार में वर्गीकृत किया गाया है।

--------------------------------------- Table 4.3 ----------------

अनाज अधिशेष क्षेत्र à अनाज कमी वाले क्षेत्र  (आपूर्ति) (अकाल और भुखमरी की व्यापकता को रोकना)

 

निर्धन परिवारों के पक्ष में कीमतों का संशोधन ।

 

 

एफ़सीआई के अनाज भंडार भरे पड़े हैं । अनाज सड़ रहा है या चूहे खा रहे हैं ।

 

केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक और इसके मोजा मानदंडो में अंतर –

 

-------------------------- graph 4.2 --------------------------

आरेख 4.2 का अध्ययन करें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देंः

  • हाल में किस वर्ष में सरकार के पास खाद्यान्न का स्टॉक सबसे अधिक था?
  • एफ-सी-आई- का न्यूनतम बफ़र स्टॉक प्रतिमान क्या है?
  • एफ-सी-आई- के भंडारों में खाद्यान्न ठसाठस क्यों भरा हुआ है?

 

 

 

वर्ष   

एफ़सीआई के पास

गेंहूँ और चावल का भंडार

न्यूनतम बफ़र प्रतिमान

2014

65.2 करोड़ टन  

(लगातार प्रतिमान से ऊंचा बना रहा)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

बफ़र स्टॉक का उच्च स्तर à अवांछनीय और बर्बादी, अनाज की गुणवत्ता में ह्रास, उच्च रख-रखाव लागत

 

उपाय / हल :- न्यूनतम समर्थित मूल्य को कुछ वर्ष स्थिर रखना

 

 

 

वर्धित न्यूनतम समर्थित मूल्य पर खरीद का दबाव à प्रमुख अनाज उत्पादक राज्यों द्वारा

(पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, आंध्र-प्रदेश, पश्चिम बंगाल) à केवल दो फसलों तक सीमित (गेहूँ और चावल)

 

न्यूनतम समर्थित मूल्य में वृद्धि का दुष्परिणाम (नकारात्मक प्रभाव) à

1)  किसानों ने मोटे अनाजों की खेती समाप्त कर धान और गेंहूँ की खेती करना शुरू किया

2)  धान की खेती सघन सिंचाई से पर्यावरण और जल-स्तर में गिरावट

(कृषि विकास को सतत बनाए रखने में बाधा / रुकावट)

3)  सरकार की खाद्यान्नों की वसूली अनुरक्षण लागत बढ़ गई

4)  एफ-सी-आई- की बढ़ती परिवहन और भंडारण लागत ने इसे (वसूली अनुरक्षण लागत) और बढ़ा दिया है।

 

मोटा अनाज = गरीबों का प्रमुख भोजन

 

NSSO Report 558 (प्रति व्यक्ति चावल खपत)

 

क्षेत्र

वर्ष

किग्रा. प्रतिवर्ष

ग्रामीण भारत

2004-05

6.38

2011-12

5.98

नगरीय भारत

2004-05

4.71

2011-12

4.49

 

PDS चावल की खपत ग्रामीण भारत में 2004-05 से 2011-12 में दुगुनी हुई है ।

PDS चावल की खपत नगरीय भारत में 2004-05 से 2011-12 में 66% वृद्धि हुई है ।

 

पीडीएस गेंहूँ की खपत ग्रामीण तथा नगरीय भारत में 2004-05 से दुगुनी हुई है ।

 

पीडीएस डीलर के अपचार –

  • अनाज को खुले बाजार में बेचना (अधिक लाभ कमाना)
  • राशन दुकानों में घटिया अनाज बेचना
  • दुकान कभी-कभार खोलना

 

दुकानों में घटिया अनाज पड़े रहना ।  (समस्या)

 

पीडीएस में गिरावट आई है । (हाल के वर्षों में)

 

पहले à निर्धन या गैर निर्धन राशन कार्ड (निश्चित कोटा), एक समान कीमत

वर्तमान à तीन प्रकार के कार्ड और कीमतों की शृंखला

 

एपीएल के लिए खुले बाजार में तथा राशन की दुकान में एक ही कीमत है ।

 

सहकारी समितियों की खाद्य सुरक्षा में भूमिका –

 

दक्षिण-पश्चिम भारत में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका

निर्धनों को कम कीमत पर खाद्यान्न बेचना

तमिलनाडू à 94% राशन की दुकानें सहकारी समितियों द्वारा संचालित

दिल्ली à मदर डेयरी – दिल्ली सरकार द्वारा नियंत्रित कीमतों पर दूध और सब्जियाँ उपलब्ध करना ।

 

गुजरात à दूध और दुग्ध उत्पादों में अमूल कंपनी (सहकारी समिति) à श्वेत क्रांति

 

महाराष्ट्र à अकादेमी ऑफ डेव्लपमेंट साइन्स (ADS) द्वारा अनाज बैंकों की स्थापना ।

 

1- भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?

2- कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?

3- भारत में कौन से राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं?

4- क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है? कैसे?

5- भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है? व्याख्या कीजिए।

6- जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है?

7- मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद कीजिए?

8- गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो

योजनाओं की चर्चा कीजिए।

9- सरकार बप़्ाफ़र स्टॉक क्यों बनाती है?

10- टिप्पणी लिखें:

(क) न्यूनतम समर्थित कीमत

(ख) बप़्ाफ़र स्टॉक

(ग) निर्गम कीमत

(घ) उचित दर की दुकान

11- राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ हैं?

12- खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।

Last modified: Thursday, 29 December 2022, 10:00 PM